चंद्रयान-1 की सफलता के बाद जल्दी ही भारत को एक और बड़ी सफलता मिलने वाली है। इसरो और टाटा के सहयोग से अगले साल तक हाइड्रोजन ईंधन से चलने वाली बसें सड़कों पर दौड़ने लगेंगी।इसरो के अध्यक्ष माधवन नायर के अनुसार इसरो को द्रवित हाइड्रोजन के इस्तेमाल में महारत हासिल है। इस ईंधन का प्रयोग घरेलू विकसित क्रायोजनिक इंजन में किया जा रहा है। पर्यावरण अनुकूल वाहन बनाने की लिए टाटा के साथ अनुबंध करके इस ईंधन का इस्तेमाल किया जाएगा।नायर ने बताया कि इसरो ने इसके लिए इंजन का डिजायन तैयार कर लिया है और प्रोटोटाइप मॉडल भी बना लिया गया है। वाहन के शेष हिस्सों का निर्माण टाटा करेगा। इस वाहन के अगले साल तक सड़कों पर आने की उम्मीद है।इसरो को अंतरिक्ष तकनीक से आम लोगों की मदद और सैटेलाइट के जरिये टेलीमेडिसिन की सुविधा मुहैया कराने जैसे कदमों के लिए जाना जाता है। अगर हाइड्रोजन ईंधन का प्रयोग सफल रहता है तो इसरो आम लोगो को तकलीफ से निजात दिलाने में और महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकेगा।नायर ने कहा कि अंतरिक्ष में यान भेजने में खासी भूमिका निभाने वाले क्रायोजेनिक इंजन की तकनीक भारत को देने से मना कर दिया गया तो इसरो ने इस इंजन को देश में विकसित करने का बीड़ा उठाया।अब यह काम अंतिम चरण में है और इसके जमीनी परीक्षण हो चुके हैं और वर्ष 2009 की पहली तिमाही में इसकी पहली उड़ान हो सकती है। हाइड्रोजन को ईंधन के रूप में सेल में भरा जाएगा तो इससे 80 किलोवाट की बिजली पैदा होगी जो एक भरी बस को ले जाने के लिए पर्याप्त होगा।इसलिए कोशिश यह की जा रही है कि एक कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) से चलने वाली जैसी एक बस बनाई जाए। इसके लिए हाइड्रोजन को आठ बोतलों में उच्च दबाव में भरा जाएगा और इसे वाहन के ऊपर लगाया जा सकेगा। इनको चलने में आने वाला खर्च आम डीजल से चलने वाले वाहनों से थोड़ा अधिक हो सकता है, लेकिन इससे पर्यावरण को कोई खतरा नहीं होगा क्योकि इससे प्रदूषण नहीं फैलेगा।
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