तुम सागर थी, क्यो सरिता बन गई?
समझदार होकर, क्यो नादान बन गई?
जलती रही समा के साथ, क्यों न दीपक बन गई?
मार्ग दर्शन कर, क्यो न मार्ग दर्शक बन गई?
तुम खुश थी, क्यो दर्द बन गई?
भुले न भुलाये, क्यो स्मृति बन गई?Labels: Hindi, Poem
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on Saturday, November 15, 2008 at 8:30 PM.
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